सेल्फी लेने के चक्कर में लोगों में बॉडी डायस्मोर्फिक डिसऑर्डर बढ़ रहा है। मनचाहा लुक न होने की मानसिक पीड़ा को बॉडी डायस्मोर्फिक डिसऑर्डर कहते हैं। लंदन में हुए एक शोध के अनुसार इसका शिकार सबसे ज्यादा किशोर होते हैं। वे बार-बार सेल्फी लेते हैं उसमें आंख, नाक, मुस्कान, बाल आदि को निहारते हैं और यह सिलसिला तब तक जारी रहता है, जब तक परफेक्ट सेल्फी न आ जाए। इसके लिए जरूरी है कि हम सामाजिक बनें और अपनी कमियों को दूसरों के जरिए जानने का प्रयास करें।
स्किन पर सेल्फी का असर -
एक्सपर्ट्स के अनुसार इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियेशन आपकी त्वचा में मौजूद डीएनए पर बुरा असर डालता है। इस रेडिएशन के चलते शरीर की स्किन रिपेयरिंग की क्षमता पर भी बुरा असर पड़ता है, जिससे समय से पहले झुर्रियां दिखनी शुरू हो जाती हैं और माना जाता है कि किसी भी तरह की क्रीम या सनस्क्रीन इससे बचाव नहीं कर सकती। हालांकि एक अच्छा स्क्रब त्वचा की सेहत काफी अच्छी रख पाता है। त्वचा विशेषज्ञ और ओबागी स्किन हेल्थ इंस्टीट्यट के संस्थापक डॉ. जेन ओबागी कहते हैं कि आप त्वचा को बाहर से हाइड्रेट नहीं कर सकते यानि उसकी पानी की जरूरत को बाहर से पूरा नहीं कर सकते। ये जरूरत अंदर से ही पूरी की जा सकती है।
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