प्रदूषण और रहन सहन के तौर तरीकों में आए बदलाव के कारण स्किन रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। एक अध्ययन के मुताबिक आज शहरी और ग्रामीण इलाकों में 10 में से 7 लोग चर्म (स्किन) रोगों से परेशान हैं। इसमें अधिकतर बीमारियां जानकारी के अभाव में होती हैं।
पसीने से बढ़ती है समस्या -
स्किन के अधिकतर रोग पसीने से होते हैं। चिपकी हुए जगह (जांघ और बगल आदि) में पसीने के एकत्र होने और गंदगी जमा होने से वहां फफूंद पनपने लगते हैं। शुरुआत में वहां कालापन, लालपन, फुंसियां या फिर चकत्ते बन सकते हैं। ध्यान न देने पर खुजली,एलर्जी या फिर जलन हो सकती है। छोटे बच्चों , दूध पीते नवजात शिशुओं में पसीने से घमोरियां या फोड़े-फुंसी भी हो सकते हैं। सूखा रखें और वहां बार-बार पाउडर लगाते रहें।
इनको स्किन डिजीज की आशंका अधिक -
गर्मी में हाइपोथायरॉयड के मरीज और हेयर कलर कराने वाले लोगों को स्किन डिजीज और सन एलर्जी का खतरा बढ़ जाता है। थायरॉयड में स्किन रुखी और पतली हो जाती है जबकि हेयर कलर में पैराफिनायल डायमीन नामक तत्त्व होता है इससे भी धूप से एलर्जी का खतरा बढ़ जाता है। स्किन पर लाल चकत्ते पड़ते हैं और खुजली होती है। धूप से बचाव करें।
अल्ट्रावायलेट किरणों से बढ़ती है समस्या -
अल्ट्रावायलेट किरणों और प्रदूषण से एलर्जी आम बात है। इससे झुर्रियां जल्दी आने लगती हैं और चेहरे की प्राकृतिक चमक कम हो जाती है। कुछ लोगों में स्किन कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है। धूप में निकलने से पहले फुल स्लीव कपड़े पहनें। कैप लगाएं। शुष्क त्वचा पर ज्यादा साबुन या हार्ड फेसवॉश न लगाएं। सनस्क्रीन 2-3 तीन बार लगाएं। पानी खूब पीएं।
अपने मन से न लें दवा -
ढीले साफ-सुथरे सूती कपड़े पहनें। सुबह-शाम स्नान करें। दूसरों के कपड़े न पहनें। बाजार में मिलने वाली क्रीम में स्टेरॉयड होता है जो इंफेक्शन को थोड़े समय तक दबा देते हैं लेकिन ठीक नहीं करते। अपने मन से कोई दवा न लें।
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